• Published : 01 Sep, 2015
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मुहब्बत का यही अन्जाम लिखा है तो क्या किजीये,
तुम्हारे दर पे निकले दान लिखा है तो क्या किजीये। 

मुझे तो ये खुशी है कि तुम्हारा दिल तो मेरा है,
बिछड़ने का अगर इमकान लिखा है तो क्या किजीये। 

तेरे चेहरे को अक्सर देख कर मै पुछ लेता हुं,
कि इस चेहरे पर मेरा नाम लिखा है तो क्या किजीये। 

बना लेते हैं हम दोनो बहाने पास आने के,
अगर ऐसे हमारा साथ लिखा है तो क्या किजीये। 

मुझे पा कर न मिल पाओगे खालिद अब ये लगता है,
मेरी उल्फत का ये इनाम लिखा है तो क्या किजीये। 

About the Author

Khalid Musanna

Joined: 30 Aug, 2015 | Location: ,

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