एक दोस्त है मेरा इसी मुहल्ले का
सोचा वो भी आज़ाद है हिन्दुस्तानी
सुना है अगले हफ्ते शादी कर रहा है
दहेज़ के पैसों से अपना घर बसाने
और मुझे लगा की हम स्वतंत्र है
आज़ादी ही शायद स्वतंत्रता है
हमारे बगल में एक अमीर परिवार रहता है
सुना है उन का बेटा डाक्टरी पढ़ रहा है
मेहनत करना कभी तो उसे सिखाया नहीं
सुना है जात के नाम पर आरक्षण मिला है
और मुझे लगा की हम स्वतंत्र है
आज़ादी ही शायद स्वतंत्रता है
कल शाम एक दूकान में चल दिया यूँ ही
सोचा आज कुछ नए कपडे लेता चलूँ
पूछा कौनसी कमीज़ बेहतर है मियाँ
वो बोले "आठसौ के विदेसी और चारसौ के देसी"
और मुझे लगा की हम स्वतंत्र है
आज़ादी ही शायद स्वतंत्रता है
अखबार में पढ़ा कल पन्ने पलटते
की अठारा प्रतिशत बच्चे साक्षर नहीं है
वह तिरंगे के रंग पहचान लेते है खुद
पर उस का इतिहास कोई और पढ़कर सुनाये उन्हें
और मुझे लगा की हम स्वतंत्र है
अब शायद, स्वतंत्रता कुछ और ही है
- तुषार कामत
१६/०८/२०१२
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