कभी कभी खुद से ही बिखराया सब समेट लेती हूँ,
दर्द जब हद से बढ़ जाए, तो कुछ तूफ़ानी खड़ा कर लेती हूँ
उमर की दरखास्त कहो या वक़्त का तक़ाज़ा
अपने ही आंसू पीके खुद को हरा कर लेती हूँ
होती ध्वंस इस धरती को निरिहता से देख लेती हूँ
सब कुछ ठीक ही तो है, बोल अपने को समझा लेती हूँ
चीख पुकारतीं अपनी ही आवाज़ को,
सुनकर भी बार बार उनदेखा उनसुना कर देती हूँ।
टूटते रिश्ते सम्भाल सम्भाल के थोड़ा और थक लेती हूँ
मन भर आए तो भूली कुछ यादें ताज़ा कर लेती हूँ
कल खड़े थे साथ जो, अब साथ छोड़ गए
दिल के बिखरे पुर्ज़ों को गोंद लगा जोड़ लेती हूँ
देते जवाब इस दिल को, अभी वक़्त नहीं बोल फूसला लेती हूँ
बुरे ख़्वाबों की ताबीर ना हो, अपने को जगा के रख लेती हूँ
रात जगे तन्हाई में , चाँद सितारे भी संग छोड़ दें
अपने ही आंसू पी कर, खुद को हरा कर लेती हूँ
Comments