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मैं अकसर उससे पूछती थी " क्यों चिढ़ाते हो मुझे इतना?! मज़ा आता है क्या तुमको मुझे रुलाने में?! "
वो हंस कर बस इतना कह देता "हां,आता है मज़ा। तू चिढ़ भी तो जल्दी जाती है।"
मौसम बदले , साल गुज़रे
साथ छूटे, साथ बने
फिर एक दिन अचानक वक़्त के एक मोड़ पर
टकरा गए हम दो दिलजले
नज़रे मिली, दिल मिले
बातें हुई, जज़्बात जगे
किस्से हुए और उन किस्सों पर लगे ठहाके
मैं इंतज़ार में थी कि शायद वो फिर चिढ़ाए
आंखों में दबे कहे अनकहे जज्बातों को रास्ता मिल जाए
जाने कब से नहीं रोई थी
पल गुज़रे, वो घड़ी भी करीब आ गई जब हमें फिर अलग होना था
जिस्म गले लगे, आत्माओं ने धडकनों को सुना
मुड़ गए हम अपनी अपनी राह चलने को
तभी एक टोह सुनी
" सुन ओ सुमडी, सुन ना!"
"सुमडी!" मैं रुक गई।
एक पल को मेरी सांस जैसे मुझे छोड़ निकल गई हो।
वो करीब आया और बोला
" जानता था प्यार करने लग गई है तू मुझको। मेरी बातों का असर होता था तुझपे। तुझे चिढ़ाने में मुझे मज़ा नहीं आता था। तेरे आंसू दर्द देते थे। लेकिन जानता था कि दुनिया वैसी नहीं है जैसी तू और मैं देख और समझ रहे थे। तेरी और मेरी दुनिया में बड़ा फर्क था।
हमारी जात ही नहीं, धर्म भी अलग थे। एक लड़के से कहीं ज्यादा दर्द, तकलीफ और रुसवाई एक लड़की को झेलनी पड़ती है…...मोहब्ब्त में।
सौमया हैदर, वर्धन कुमार भी तुमको बहुत चाहता था।
तू मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी और आज भी है। तुझे दर्द देने का मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था। बस बेरुखा होकर तुझे खुद से नाउम्मीद होते देखता। तुझे खुद के सहारे पर छोड़ देता, यूं आदतों से परे मैं खुद भी नहीं हो पा रहा था। लेकिन तुझको तेरे ही सहारे पर खड़ा करने का सोच चुका था मैं।
कलेक्टर साहिबा,
डॉक्टर वर्धन कुमार की मुबारक कबूल हो आपको।
देखो चांद रात भी हो गई है। वो रहा ईद का चांद।
मेरी सबसे प्यारी दोस्त, मेरी 'सुमडी' को ईद मुबारक।"
"ईद मुबारक वैध, ईद मुबारक!"
मैं उसके गले लग गई। चांद को देखा तो वो आज कुछ बदला सा था जैसे दोस्ती वाले इश्क़ की इस दास्तां पर फक्र हो रहा हो उसको।
मैं फक्र कर रही थी मेरे सबसे अच्छे दोस्त …..वर्धन कुमार, जो वैध है मेरे लिए।
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